इफको ने लहराया परचम, फर्टिलाइजर और एग्रो कंपनियों में नंबर-1

फर्टिलाइजर सेक्टर की दुनिया की सबसे बड़ी संस्था इफको ने फर्टिलाइजर और एग्रो केमिकल के क्षेत्र में फिर अपना परचम लहराते हुए पहला स्थान प्राप्त किया है. भारत में फॉर्चून 500 कंपनियों की सूची में इफको लगातार अपना पहला स्थान बरकरार रखता आया है. इस बार फॉर्चून इंडिया की 500 कंपनियों की लिस्ट में इफको 68वें स्थान पर काबिज है.

देश के सहकारी संस्थानों में इफको अकेली ऐसी संस्था है जिसने टॉप 100 में अपनी जगह बनाई है. इफको से जुड़े कोऑपरेटिव वैज्ञानिकों के लिए यह बहुत बड़ी कामयाबी है. इससे साबित होता है कि यह संस्था दुनिया में कोऑपरेटिव ग्रुप के रूप में लगातार दबदबा कायम करती जा रहा है. अभी हाल में वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर ऑफ इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें दुनिया की कुल 300 सहकारी संस्थानों में इफको को पहला स्थान दिया गया था. इफको अपनी 36 हजार कोऑपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से देश के तकरीबन 4 करोड़ किसानों को सीधे तौर पर मदद कर रहा है.

पर्यावरण सुरक्षा को लेकर भी इफको अपनी प्रतिबद्धताएं निभाता रहा है. इसके तहत देश में लगभग 36 लाख नीम के पेड़ लगाए गए हैं. अभी हाल में इस संस्था ने अपने गुजरात स्थित कलोल प्लांट के अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) में भी बड़ा निवेश किया है. देश की यह अग्रणी सहकारी संस्था खाद्य प्रसंस्करण और ऑर्गेनिक उत्पाद के क्षेत्र में भी अच्छा काम कर रही है. 

'इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड' (इफको) विश्व की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारिता संस्था है. देश में खाद्य सुरक्षा के लिए 1967 से लेकर अब तक इसने कई बड़े काम किए हैं. अपनी इन बड़ी जवाबदेही और कार्यों को संपन्न करने के लिए इफको ने देश-दुनिया की कई बड़ी कंपनियों के साथ समझौता किया है. इन खास कंपनियों में जिफको, ओमिफको, केआईटी के नाम शामिल हैं. साल 2017-18 के वित्तीय वर्ष में इफको ने 84.79 मिट्रिक टन उर्रवक का उत्पादन किया. इसका सालाना टर्नओवर 20,788 करोड़ का रहा. इंटरनेशनल फर्टिलाइजर एसोसिएशन और इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस में इफको का काफी नाम है.

इस नजरिए से डीआईपीपी द्वारा 1 फरवरी 2019 को अंकित करना सरकार की सरासर गलती है और इसलिए भी किसी भी तारीख को बदलना सरकार की एक और गलती होगी.

खंडेलवाल ने कहा की ई-कॉमर्स कम्पनियों द्वारा तारीख आगे बढ़ाने की मांग एक सोची-समझी चाल है और वे इसकी आड़ में पॉलिसी को लागू करने से रोकना चाहते हैं. जिससे लागत से भी कम दाम पर माल बेचने और बड़े डिस्काउंट देने का उनका कारोबार चलता रहे और वे देश के रीटेल बाजार पर अपना कब्जा जमा सकें.

उन्होंने कहा की सरकार इन कम्पनियों के किसी भी झांसे में न आए और किसी भी हालत में तारीख आगे न बढ़ाई जाए.  खंडेलवाल ने पत्र में यह भी कहा कि प्राईवट लेबल या अपने ब्रांड से माल बेचने के जरिये से ई-कॉमर्स कम्पनियां मार्केट पर एकाधिकार का बड़ा खेल खेलती हैं. सरकार द्वारा 3 जनवरी को जारी एक परिपत्र में कई शंकाओं का समाधान किया गया है, लेकिन एक समाधान में प्राईवट लेबल या ब्रांड को जारी रखने पर भ्रम बन गया है.

उन्होंने इस पॉलिसी के अंतर्गत प्राईवेट लेबल या ब्रांड द्वारा माल बेचना जारी रहेगा या नहीं, इसे स्पष्ट किए जाने की मांग की है. अगर यह जारी रखा जाए तो फिर पॉलिसी का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा और ई-कॉमर्स में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और बराबरी के कारोबारी माहौल को स्थापित करने की सरकार की मंशा पूरी तरह खत्म हो जाएगी.

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